कालिम्पोंग

गोर्खा जाति को विभाजन करने के सरकार के नीति एक के बाद दुसरे का  खुलासा होना शुरू हो गया हे । लेप्चा जाति के बाद हाल गोर्खा समुदाय के ख्रिष्टिय धर्मावलम्बी युवा-युवती को सरकार ने गोर्खा प्रमाण पत्र देना बंद किया हे । आज भारतीय गोर्खा परिसंघ के राष्ट्रिय अध्यक्ष डा. एनोस् दास प्रधान ने उक्त खुलासा करते हुए सरकार के उक्त निति का  घोर निन्दा किया हे । संघ के शाखा कार्यालय में आयोजित पत्रकार सम्मेलन को सम्बोधन करते हुए दस ने कहा की भारत एवं बंगाल सरकार के ऐसे जाति विभाजन के नीति अत्यन्त खतरनाक करार दिया हे । पहाड में एक गाछ के टहनी के तरह रह रहे गोर्खा एवं लेप्चा जाती के बीच उक्त फार्मूले लगाकर राज्य  सरकार ने लेप्चा जाती को गले लगाकर जाति विभाजन के राजनीति किया । पर अब हाल में गोर्खा ख्रिष्टिय धर्मवालम्बीयो को जिल्ला शासक एवं महकमा अधिकारी कार्यालय या खण्ड बिकाश अधिकारी कार्यालय से  गोर्खा प्रमाण पत्र के लिए को आवेदन नहीं करने दिया जा रहा हे । । उन्होने आगे बताया की वर्ष 2004 में भारत सरकार ने एन्थ्रोपोलोजिकल सर्भे अफ् इण्डिया के आधार में जारी किये अधिसूचना के तहत इन लोगो को गोर्खा प्रमाण पत्र नहीं दिया जा रहा हे। उक्त अधिसूचना ने हिन्दु एवं बुद्धिष्ट धर्म मान्ने वाले मात्र गोर्खा होने की बात लिखा गया हे उक्त जानकारी डा. प्रधान ने दिया । तथाकथित धर्म निरपेक्ष भारत देश में  धर्म के नाम में जाति बिभाजन के काम हो रहा हे ।  इस प्रकार के सरकार के कु प्रयास के हम घोर बिरोध जानते हे प्रधान ने कहा । डा. एनोस् दास प्रधान स्वंय एक ख्रिष्टय धर्वालम्बी हे जो चर्च अफ् नर्थ इण्डिया के पूर्व महासचिव भे रह चुके हे । इस हैसियत में भे उन्होंने सम्पूर्ण भारत में रह रहे ख्रिष्ट्रिय धर्मावलम्बी को ऐसे धर्म के आधार में जाति विभाजन करने के नीति का पुर जोर विरोध करने का आह्वान करते हुए गोर्खा ख्रिष्टिय संगठन से इस नीति के विरोध में कूदने की बात कहा हे । वही जब कालिम्पोंग के महकमा कार्यालय से जब इस बिषय पर पूछा गया तो उन्होंने इस बात को नकारते हुए कहा की यहाँ से धर्म के आधार में नहीं पर जाती के आधार में गोर्खा सर्टिफिकेट दिया जाता हे । वही जिल्ला शासक कार्यालय से अभी तक गोर्खा ख्रिष्टिय धर्मवालम्बीयो को उक्त प्रमाण पत्र नहीं देने के कोई भी सर्कुलर नहीं आने की बात भी कार्यालय ने स्पस्ट किया हे| |